रविवार, नवंबर 22, 2009
उठो बे... नींद से जागो और चुपचाप काम पे लग जाओ
यार इसी उधेड़-बुन में की करना तो कुछ है नहीं... एक बार फिर चद्दर में घुस गए और सोचा की एक घंटा और सो जायें तो क्या हर्ज है यार... | यार बनारस और जौनपुर पहुँच गए इस बार... बनारस के चौक और घाट ... याद आई वह अनंत दीपों की श्रृंखला जो देव दीपावली पर सभी घाटो पर प्रज्ज्वलित की जाती हैं | वह दीपावली और घाटो पर होने वाली महा आरती....वाह वाह | यार क्या कुछ नहीं था आने जाने की समस्या, बसों में धक्के खाते हुए यूनिवर्सिटी जाना और फिर वैसे ही वापस आना... | वह जोश जो किसी से भी लड़ने भिड़ने का साहस देता था... | कहाँ गुम हो गया सब.. कैसे हुआ यह सब... | कैसे मैं तरक्की के घोड़े पर सवार हो गया और अपने आप को कहीं दूर मार आया... |
चलो कोई बात नहीं याद करलो की कम से कम कभी तो मैं भी बहादुर था... भले ही वक्त ने मुझे बहु-राष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाला एक बंधुआ मजदूर बना दिया मगर फिर भी इसी बात का संतोष कर लो की कभी तो बहादुर था.... कोई बात नहीं कभी फिर से मैं बहादुर बनूँगा और फिर से कोई ना कोई ऐसा दिन आएगा जब मैं अपनी मर्जी से सोऊंगा और जागूँगा.. |
-देव
नवम्बर २२, २००९
सोमवार, नवंबर 09, 2009
मैं भी शायद बुरा नहीं होता
कहीं भीड़ में गुम हो जाना चाहता हूँ
मंगलवार, नवंबर 03, 2009
अबे मेरे फटे में टांग मत डालो
अब साहब भले कुछ भी हो, कोई साथ आये या ना आये.. हम तो अपना काम करेंगे.. ठाकुर रविन्द्र नाथ टैगोर का एकला चलो रे... और ज्ञान भाई की एक कविता जो आज मेरे मानसिक स्थिति को बहुत अच्छे से बयां कर रही है | आप लोग भी धन्य-वाद दीजिये ज्ञान प्रकाश विवेक साहब का...
तेज़ बारिश हो या हल्की भीग जाएँगे ज़रूर
हम मगर अपनी फटी छतरी उठाएँगे ज़रूर
दर्द की शिद्दत से जब बेहाल होंगे दोस्तो
तब भी अपने आपको हम गुदगुदाएँगे ज़रूर
इस सदी ने ज़ब्त कर ली हैं जो नज़्में दर्द की
देखना उनको हमारे ज़ख़्म गाएँगे ज़रूर
बुलबुलों की ज़िन्दगी का है यही बस फ़ल्सफ़ा
टूटने से पेशतर वो मुस्कुराएँगे ज़रूर
आसमानों की बुलंदी का जिन्हें कुछ इल्म है
एक दिन उन पक्षियों को घर बुलाएँगे ज़रूर.
देव बाबा
३-नवम्बर-२००९
शनिवार, अक्टूबर 31, 2009
आत्म-निर्भर बनो देव बाबा
घर आये तो भैया आत्म निर्भरता वाला लेख दो बार पढा... और गाँधी जी को भी याद किया... | कुछ उर्जा आई और फिर सिनेमा जाने का प्लान एकदम केंसिल कर दिया | सो मेरे धोके-बाज़ मित्रो..., आज तुमने मुझे एक ज्ञान दिया... किसी से कभी कोई उम्मीद ना रखो... आत्म-निर्भर बनो... | एकला चलो रे ही अपना मन्त्र मानो | तो भैया शाम हो गयी है और अकेले पन को काटने के लिए यह लिख रहे हैं....... अगर शोर्ट में बताएं तो आत्म निर्भरता की ओर एक स्टेप बढा रहे हैं... |
चलो बाकी बाद में...
देव बाबा
अक्तूबर ३१, २००९
निंदा सुख अनंत है, सब उन्नति को मूल ..
मगर साहब आज एक बहुत अच्छी चीज सीखी... सो साहब आज हमने सिखा की दुनिया में तरक्की के लिए मेहनत ज्यादा ज़रूरी नहीं है , ज़रूरत है परिस्थितिओं के हिसाब से राजनीती और कपटनीति की | अगर आप राजनीती या कहें कूट निति से काम निकल सकते हैं तो फिर आप एक श्रेष्ठ मानव कहलाने के अधिकारी हैं नहीं तो फिर आप आम इंसान हैं.. | अब साहब दुनिया के एक से एक हीरे भरे हैं............ जिन्होंने अपनी परिस्थितियों का लाभ उठाया, मुश्किलों को हल करने की जगह उनसे अपना फायदा निकला और अपना झंडा बुलंद किया | अब साहब
"पर निंदा उन्नति आहे, सब फंदों को मुल ...
बिनु पर निंदा बाच के, मिटे ना हिय को शूल "
बोलो दिया बत्ती लालटेन की जय... सो भाई लोगों आँखे खोलो... और जल्दी से जाओ और अपनी कंपनी के बोस पास जाओ और जितना गरियाना है अपने साथिओं को गरियाओ, अगर तुमने लेट किया और तुम्हारा साथी पहले गया तो फिर खेल ख़त्म... जितनी जल्दी तरक्की की सीढियाँ चढ़ना चाहते हो उतनी जल्दी अपने बोस को फंसाओ | अगर वह पट गया तो दिन को होली रात दीवाली रोज मनाती मधुशाला रोज गावोगे.... नहीं तो एक ही गान गाओगे... लाखो तारे आसमान में एक मगर ढूंढे ना मिला.... |
तो काम बंद करो भाई, काम तो गंवार लोग करते हैं | बस हर काम का बवाल बनाओ और एक बकरा खोजो जिसके सर पे ब्लेम डाल सको... | और दुनिया में एक ही मन्त्र सत्य है और वो की बोस खुश तो सब खुश.... | कुछ लोग कहेंगे चापलूसी है यह... तो मेरे भाई यह तुम्हारी दकिया-नुसी और रुढी-वादी सोच को सुधारो... बड़े बड़े बीरबलों और तेनालिरामों ने इसे ही अपना तरक्की का मूल मन्त्र माना है भाई... अब आप बीरबल के भी बाप हो अलग बात है.... मगर भाई आम इंसानों के लिए तो यह फार्मूला एकदम हिट है.... टेस्टेड एंड सर्टि-फाइड......... |
अबे सोचो मत अपनी तरक्की का मार्ग प्रशस्त करो और मस्त रहो... मस्त जियो... |
देव बाबा
३१ अक्तूबर २००९
मंगलवार, अक्टूबर 27, 2009
बांटो और राज करो
मेरी कविता की चंद लाइने...
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बांटो और राज करो,
अपनी राजनीती चमकाओ
देश की जनता को तो आदत है
जी हुजूरी करने की
तंत्र के पिस्सुओं को
खून से सींचने की
भाई को भाई से
प्रान्त को प्रान्त से
लड़वाओ
जैसे भी हो कैसे भी हो
अपनी राजनीती चमकाओ
एक दिन आएगा
हिन्दुस्तानी युवा जागेगा
एक सुबह आएगी
अँधेरा मिटाएगी
नाश होगा भ्रष्टाचार का
दिलों में फैले वैमनस्य का
और संचार होगा प्रेम और त्याग का
फिर सार्थक होगी
रामायण और महाभारत की शिक्षा
फिर सार्थक होगी
राम-राज्य की कल्पना
एक दिन आएगा
एक दिन आएगा
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मगर वह दिन कब आएगा यही समस्या है और यही आज का सबसे बड़ा प्रश्न है............. हमारे शशि भैया हमेशा एक बात कहते हैं की दुनिया में हर कोई चाहता है की भगत सिंह दुबारा जन्म ले मगर मेरे यहाँ नहीं पडोसी के यहाँ क्युकी अगर घर में भगत सिंह जन्म ले गया तो फिर तो कुर्की करा देगा .... | बात तो एकदम सही है मगर फिर भी कुछ तो करना होगा... कही से कुछ शुरुआत तो होनी चाहिए ..... ......
देव बाबा
२७ अक्तूबर २००९
रविवार, अक्टूबर 18, 2009
भाई-दूजः बहन के निश्छल प्यार का प्रतीक
पौराणिक कथाओं के यमराज अपनी बहन यमुना से बहुत स्नेह करते थे। एक बार भाई दूज के दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर आये तो अचानक अपने भाई को अपने घर देख यमुना ने बड़े प्यार और जतन से से उनका स्वागत किया और कई तरह व्यंजन बना कर उन्हें भोजन करवाया और खुद ने उपवास रखा, अपनी बहन की इस श्रध्दा से यमराज प्रसन्न हुए और उसे वचन दिया कि आज के दिन जो भाई अपनी बहन को स्नेह से मिलेगा उसके घर भोजन करेगा उसको यम का भय नहीं रहेगा। इस दिन बहन अपने भाई की दीर्घायु एवं स्वस्थ जीवन के लिए मृत्यु के देवता यमराज की पूजा करती है। अपने भाई को विजय तिलक लगाती है ताकि वह किसी भी तरह के संकटों का सामना कर सके।
लो भाई आज के दिन की कथा तो हो गयी और रही बात भाई और बहन के प्रेम और विश्वास की तो दुनिया का शायद सबसे पवित्र रिश्ता है यह | बहन के लिए भाई से बड़ी कोई सुरक्षा शायद हो ही नहीं सकती, भैया है न.... इस बात का भरोसा ही उसके लिए बहुत है.... आज का यह पोस्ट मेरी बहन को समर्पित है.... जो शायद दुनिया में मेरी सबसे बड़ी प्रशंशक सबसे बड़ी फैन है.... एक कविता सुनील जोगी साहब की यहाँ लिखना चाहूँगा....
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मेरी प्यारी बहना
भइया का है कहना
तेरे हाथ की राखी है
मेरे जीवन का गहना।
रोज़ नए सुख लेकर आए
परियों वाली टोली
रात दीवाली-सी जगमग हो
हर दिन तेरी होली
हों सोलह श्रृंगार हमेशा
हर पल सुख से रहना।
ये बंधन विश्वास प्रेम का
नहीं है केवल धागा
जीवन भर रक्षा करने का
इक भाई का वादा
संकट में आवाज़ लगाना
पीड़ा कभी न सहना।
दुर्गावती ने लिखकर भेजी
थी हुमायूँ को पाती
रक्षाबंधन उस दिन से ही
है भारत की थाती
तुम बिल्कुल चिंता मत करना
तेरा भइया है ना
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बस मेरी प्यारी सी बहन तेरा भैया है न.... सब खुशियो का एक ही सार.... मेरी प्यारी बहना मेरे लिए तेरा प्यार.....
देव बाबा
अक्तूबर १८, २००९
मंगलवार, अक्टूबर 13, 2009
वसीम बरेलवी एक और नए अंदाज़ में
हमारे दौर में आँसू ज़ुबाँ नहीं होता
जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटायेगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता
ये किस मक़ाम पे लाई है मेरी तनहाई
के मुझ से आज कोई बदगुमाँ नहीं होता
मैं उस को भूल गया हूँ ये कौन मानेगा
किसी चराग़ के बस में धुआँ नहीं होता
'वसीम' सदियों की आँखों से देखिये मुझ को
वो लफ़्ज़ हूँ जो कभी दास्ताँ नहीं होता
गुरुवार, अक्टूबर 08, 2009
हिंदुस्तान है भैया.... यहाँ सब चलता है
आज तो भैया गजब ही हो गया | मुंबई में चुनावी मौसम है और नेता और समाचार चैनल बस यही दोनों की मौज है | आम मुंबई-कर तो परेशान हो रहा है यार, अभी कांग्रेस हो या राष्ट्रवादी या फिर यह भाजपा और शिवसेना और या मनसे ... कोई भी हो क्या फर्क पड़ता है... | कल ही एक चुनावी रैली चल रही थी, मुझे उस रैली के चक्कर में लगे जाम से निकलने में एक घंटा लग गया.... यार दिमाग ख़राब हो रहा था और मैं मन ही मन श्राप रहा था लोक-तंत्र के दलालों को |
वैसे चुनावी मौसम में हर कोई अपनी राजनीति चमकाने में लगा हुआ है तो भाई गलत भी क्या है इसमें.... हम पूरे पूरे दिन ऑफिस में लगे रहते हैं और फिर जा के महीने के अंत में एक दिन की पूर्णिमा आती है... और यहाँ देखो एक बार नेता बनो और कोई भी तिकड़म भिडाओ और एक चुनाव जीतो फिर पूरी ज़िन्दगी बस पूर्णिमा ही पूर्णिमा ... अमावस तो पूरी पीढी में नहीं आनी भाई... |
दर-असल कमाओ और खाओ और अपनी राजनीति चमकाओ यही मूल ध्येय है यार | आम-आदमी तो हमेशा से जिंदा ही रह लेता है यार... | बांटो और राज करो, पहले यही कम अंग्रेजो ने किया अभी यही कम नेता कर रहे हैं.... आदरणीय अदम गौण्डवी साहब की एक कविता की चंद लाइने आप लोग भी सुनिए
काजू भुने प्लेट में विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नखास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में
तो भाई लोगो अपने वोट का प्रयोग अच्छे से करो और बिना किसी छलावे के सही प्रतिनिधि को चुनो.... और नहीं तो मस्त रहो क्या फर्क पड़ता है राजा कोई भी बने.... किसी की भी राजनीती का दिया जले और किसकी लालटेन बुझे.... अपने यहाँ तो सदियो से सब कुछ चलता ही आया है यार.....
देव बाबा
अक्तूबर ८, २००९
कहाँ तक आँख रोएगी कहाँ तक किसका ग़म होगा
कहाँ तक आँख रोएगी कहाँ तक किसका ग़म होगा
मेरे जैसा यहाँ कोई न कोई रोज़ कम होगा
तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना रो चुका हूँ मैं
कि तू मिल भी अगर जाये तो अब मिलने का ग़म होगा
समन्दर की ग़लतफ़हमी से कोई पूछ तो लेता ,
ज़मीं का हौसला क्या ऐसे तूफ़ानों से कम होगा
मोहब्बत नापने का कोई पैमाना नहीं होता ,
कहीं तू बढ़ भी सकता है, कहीं तू मुझ से कम होगा
-वसीम बरेलवी
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सुन लो भाई ध्यान लगा के
शुभचिंतक :- मास्टर जी कहं सायकिल के पीछे लगे हो, आपके बेटे तो सुना काफी तरक्की कर चुके हैं.
मास्टर जी :- हां मेरा बड़ा बेटा, पढ़ लिख के अमेरिका में आज बड़ा इंजिनियर है , बीच वाला जो हमेशा किसी न किसी खुर-पेंची में लगा रहता था वह वकील हो गया और आज कल हाई कोर्ट में प्रक्टिस कर रहा है.
शुभचिंतक :- और वोह छोटा वाला... जो हमेशा आपकी क्लास में मुर्गा बना रहता था.. अरे हां रमेश, वह तो किसी काम का नहीं था,
मास्टर जी :- हां वह चौराहे पे जो पान की दूकान है न, वोह उसी की है और उसी की वजह से मेरा घर चलता है, जो दुनिया के लिए किसी काम का नहीं था वही मेरे सबसे काम आ रहा है.
इसके बाद शुभ-चिन्तक ने कुछ भी नहीं कहा और मास्टर जी भी अपने घर की और बढ़ गए.
यह केवल एक कहानी नहीं है , यकीन मानिए यही आज कल की हकीकत है | अब भाई मेरे अमेरिका में अगर मर्सीडीज़ खरीदी तो क्या मतलब, उसमे बैठने के लिए ना अम्मा है और ना पापा, तो फिर.. अबे हिंदुस्तान में रहके अगर खुद की टैक्सी भी खरीदी तो उस खुशी में परिवार और मेरे अपने लोग साथ तो हैं. आज कल लोगो में एक बहुत बड़ा रोग आ गया है, की लोग खुद तो प्रक्टिकल और अधिक व्यवहारिक समझने लगे हैं, संबंधो को एक बोझ समझा जाने लगा है. मुझे याद आता है वह दिन जब मेरे घर में बिना बुलावे के पूरा मित्र मंडल आ जाता था और मेरी अम्मा को सबके लिए खाना और चाय नाश्ते की व्यवस्था अकेले ही करनी पड़ती थी, कोई मदद को नहीं आता था | आज कल के ज़माने में कितना मुश्किल है भाई |
अब आप लोग सोच सकते हैं की देव बाबा एकदम से रिश्ते और पन वाडी के उदाहरण पे कैसे उतर आए. दर-असल इधर दो तीन हफ्तों से मैंने जो कुछ भी महसूस किया बस उसी को यहां पटक रहा हूं |
और मैं तंग आ गया हु आज कल की व्यवहारिक जनता से, अपने मतलब निकलने में लगे लोगों से | यार दुनिया का एक सबसे छोटा और मासूम सा शब्द है प्रेम और विश्वास | आज कल का बाज़ार वाद उसी पर चोट कर रहा है | मास्टर जी के बच्चे एक नायब उदहारण है इसकी |
दर-असल अपना पन और विश्वास आज कल के ज़माने में कुछ अ-प्रासंगिक होते जा रहे हैं | यह अपना पन और विश्वास ही तो मनुष्य को बाकी जानवरों से अलग कर रहा है. | तो भाई लोगो अपने जीवन का आनंद लो मजे से जियो | दुश्मनी भी करो तो वह भी एक स्टैण्डर्ड के साथ... बशीर बद्र का एक शेर याद आया अभी की " दुश्मनी जम के करो मगर यह गुंजाईश रखना जब कभी हम दोस्त हो जाए तो शर्मिंदा न हो "
तो भाई लोग दुश्मनी करना छोडो और अपने अन्दर के क्रोध और अहंकार रूपी रावन को मारो, लोगो पर विश्वास करना सीखो | दुनिया आपको अपनी लगने लगेगी जब आप दुनिया को अपना समझने लगेंगे | रिश्तों की क़द्र करना, अच्छे लोगो से दोस्ती बनाए रखने के गुण को अपनाना हमारी एक बहुत बड़ी सामाजिक ज़रुरत है | एक छोटी सी मुस्कराहट आपके लिए चमत्कार कर सकती है.
बस आज का प्रवचन बहुत हुआ... अब देव बाबा आराम करेंगे..
देव बाबा
अक्तूबर ७ २००९