
यार इसी उधेड़-बुन में की करना तो कुछ है नहीं... एक बार फिर चद्दर में घुस गए और सोचा की एक घंटा और सो जायें तो क्या हर्ज है यार... | यार बनारस और जौनपुर पहुँच गए इस बार... बनारस के चौक और घाट ... याद आई वह अनंत दीपों की श्रृंखला जो देव दीपावली पर सभी घाटो पर प्रज्ज्वलित की जाती हैं | वह दीपावली और घाटो पर होने वाली महा आरती....वाह वाह | यार क्या कुछ नहीं था आने जाने की समस्या, बसों में धक्के खाते हुए यूनिवर्सिटी जाना और फिर वैसे ही वापस आना... | वह जोश जो किसी से भी लड़ने भिड़ने का साहस देता था... | कहाँ गुम हो गया सब.. कैसे हुआ यह सब... | कैसे मैं तरक्की के घोड़े पर सवार हो गया और अपने आप को कहीं दूर मार आया... |

चलो कोई बात नहीं याद करलो की कम से कम कभी तो मैं भी बहादुर था... भले ही वक्त ने मुझे बहु-राष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाला एक बंधुआ मजदूर बना दिया मगर फिर भी इसी बात का संतोष कर लो की कभी तो बहादुर था.... कोई बात नहीं कभी फिर से मैं बहादुर बनूँगा और फिर से कोई ना कोई ऐसा दिन आएगा जब मैं अपनी मर्जी से सोऊंगा और जागूँगा.. |
-देव
नवम्बर २२, २००९